आचार्य नागेश्वर शास्त्री

भगवान श्री कृष्ण की पावन जन्मभूमि  मथुरा के चौमुहाँ गांव के एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में श्री नागेश्वराचार्य जी महाराज का जन्म दिनांक……. को हुआ।  महाराज जी के पिता पंडित तोता राम शास्त्री भगवान श्री कृष्ण के अनन्म भक्त थे तथा अपना संपूर्ण जीवन भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के मंचन एवं भजन में समर्पित कर दिया। माता श्रीमती…… एवं पिता श्री के श्रीमुख से भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन सुनने एवं भगवदकृपा से श्री महाराज की बाल्यकाल से ही भगवदभक्ति में लीन रहने लगे।

आध्यात्मिकता की ओर श्री महाराज जी का लगाव बाल्यकाल से ही इतना रहा कि अपनी उत्तर मध्यमा तक की पढ़ाई गोकुल (महागन) रमणरेती में की। तत्पश्चात उच्च शिक्षा की प्राप्ति हेतु प्रसिद्ध स्थान काशी चले गए। वहां से आचार्य ने (M.A.) तक की पढ़ाई पूरी की।  काशी से आचार्य तक की पढ़ाई पूरी करने के उपरांत श्री महाराज जी ने नई दिल्ली विश्वविद्यालय से विशिष्टचार्य (M.Phil) की पढ़ाई पूर्ण करने के उपरांत विश्वविद्यालय से विद्यावारिधि (Ph.D) की पढ़ाई भी कर रहे हैं।

श्री महाराज जी द्वारा काशी में अध्ययन के समय से ही श्रीमद् भागवत कथा, राम कथा, शिवमहापुराण, श्रीमद् देवी भागवत का वाचन करने लगे एवं अनेकानेक यज्ञानुष्ठानों को भी  संपन्न कराया।

श्री महाराज जी ने अंक विज्ञान की विशेषताएं काशी में अध्ययन के दौरान अर्जित की एवं माँ पराम्बा भगवती की कृपा से मणिकर्णिका घाट पर प्राप्त की अंको को भी साधा। अंक के आधार पर श्री महाराज जी वर्तमान, भूत, भविष्य तीनों काल का ज्ञान रखते हैं।

श्री महाराज जी प्रश्न कुंडली विज्ञान के भी मर्मज्ञ है जिसके आधार पर वर्तमान, भूत, भविष्य तीनों काल का ज्ञान रखते हुए अपने ईष्ट कृपा प्रसाद से जनमानस के कल्याण में लगे हुए हैं।

निष्कर्षतः यह कह सकते हैं कि श्री महाराज जी का जीवन आम जनमानस की सेवा हेतु समर्पित है। अपने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से समाज व देश की सेवा कर रहे हैं। कथाओं के माध्यम से लोगों को जोड़कर उनमें प्राचीन संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, सद्भाव के माध्यम से सामाजिक समरसता पैदा करने का कार्य महाराज जी कर रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव आपकी कथाओं में उमड़ा जनसैलाब है – स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े, नौजवान सभी सम्मिलित होते हैं और आपके कथा प्रसंगों से आकृष्ट होकर आपके उपदेशों पर अमल करना शुरू कर देते हैं।

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